ख्याल आता है कंही चुपके से बैठे उदास मन में ये ख्याल आता है तुझे जितना भुलाने की कोशिश करू तू उतना याद आता है हर पल मुझे तेरे गए हुए नगमे तेरी की हुई बातें याद आती है जो सुर्ख फूल कभी गवाह थे हमारे रिश्ते के उनकी खुशबू धीरे धीरे फिर आती है याद कर अक्सर रोता हूँ वो मंज़र पहली मुलाकात के तू आये या न आये तेरे कदमों की आहट दबे पांव आती है वो लम्हा तुम पर नज़र पड़ी थी पहली बार वो जो तुम शरमाई थी खुद से वही तस्वीर दिल में फिर उतर आती है काफी मशहूर हुआ करते थे किस्से तुम्हारी खूबसूरती के अब उन किस्सों की सिर्फ फीकी परछायी नज़र आती है गंवारा न था आपको उन कबतरों का दाना चुगकर उड़ जाना अब कबूतर तो नहीं दिखते पर कबूतरी रोज़ आती है
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मन करता है बहुत हो गयी मोहब्बत अब तुमसे, फिर घर लौटने का मन करता है। मिले थे दोस्त बहुत इस तन्हाई के दौर में , बचपन के दोस्तों से फिर लड़ने का मन करता है। बहुत थक गया हुआ हूँ जवाब देते देते सवालो के , फिर अपनी माँ से फिजूल सवाल करने का मन करता है। वक्त गुजर गया बागो में चुरा चुरा के अमरूद खाने के , फिर अब बाडिया तोड़ बागो में घुसने का मन करता है। हर सफर को बेहतर बनाने की कोशिश में, पीछे छूट गयी बातों को जीने का फिर मन करता है। अक्सर लड़ा करता था अपने छोटे भाई से, अब फिर उसे अपने हांथो से खिलने का मन करता है। कभी तो थोड़े से भर ताल में छक कर नहाते थे, अब भरे हुए तालो से नज़ारे चुराने का मन करता है। कभी तो सिर्फ जीतना ही फितरत थी हमारी, अब जीते हुए मैचों को हारने का मन करता है। सोचता था कि इश्क़ भी क्या गशन चीज़ होगी, अब फिर उससे अज़नबी होने का मन करता है। कभी तो कोशिशें की हर पल उससे जुड़ने की, अब फिर उससे दूर होने का मन करता है। कभी तो सांसो की जगह उसको ही महसूस करते थे, अब फिर अपनी सांसे लेने का मन करता है। कभी तो बिना देखे उसे दिन की शुरुआत नही होती थी, अब नज़र ना मिले...
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एक मुलाकात अमित दत्त के साथ मंडी हाउस जाने का मेरा कारण तब और सार्थक हो जाता है जब ललित कला अकादमी में आयोजित किसी कला प्रदर्शनी को पास से निहारने का मौका मिल जाता है। आजकी प्रदर्शनी जिसका शीर्षक था लकीरे और इसके कलाकार थे अमित दत्त जी। हर बार की तरह इस बार भी मै चित्रो का अवलोकन करते हुए आगे बढ़ रहा था तभी एक नई चीज़ ने मुझे आकर्षित किया और वो था उन चित्रो के साथ लगी छोटी छोटी चिटे जिसमे हिंदी में कुछ पंकितयां लिखी थी जो उस कलाकारी के साहित्यक रुप का बखान कर रही थी। उस वक्त वंहा पर कुछ सज्जन आपस में चर्चा भी कर रहे थे तभी मुझे आभास हुआकी उसमे एक शख़्श खुद कलाकार अमित दत्त जी हैं। उनसे बातचीत के दौरान मेने उनसे पूछा की क्या आप कलाकारी के साथ कुछ लिखते है भी ? उन्होंने जवाब दिया कि लिखता हूँ और उन्हें चित्रो के साथ ही लगाता भी हूँ। चर्चा के दौरान उन्होंने अपने कुछ विचार साझा किये जिसमे वो कहते है की हमें कभी भी खूबसूरत कलाकारी करने की कोशिश नही करना चाहिये मसलन जो हमारे विचारो के रूप में दिल से निकल कर तस्वीर के रूप में उतर आये वही सही मायनो में कलाकारी है। उन्होंने कहा कि ए...