मन करता है
बहुत हो गयी मोहब्बत अब तुमसे, फिर घर लौटने का मन करता है।
मिले थे दोस्त बहुत इस तन्हाई के दौर में , बचपन के दोस्तों से फिर लड़ने का मन करता है।
बहुत थक गया हुआ हूँ जवाब देते देते सवालो के , फिर अपनी माँ से फिजूल सवाल करने का मन करता है।
वक्त गुजर गया बागो में चुरा चुरा के अमरूद खाने के , फिर अब बाडिया तोड़ बागो में घुसने का मन करता है।
हर सफर को बेहतर बनाने की कोशिश में, पीछे छूट गयी बातों को जीने का फिर मन करता है।
अक्सर लड़ा करता था अपने छोटे भाई से, अब फिर उसे अपने हांथो से खिलने का मन करता है।
कभी तो थोड़े से भर ताल में छक कर नहाते थे, अब भरे हुए तालो से नज़ारे चुराने का मन करता है।
कभी तो सिर्फ जीतना ही फितरत थी हमारी, अब जीते हुए मैचों को हारने का मन करता है।
सोचता था कि इश्क़ भी क्या गशन चीज़ होगी, अब फिर उससे अज़नबी होने का मन करता है।
कभी तो कोशिशें की हर पल उससे जुड़ने की, अब फिर उससे दूर होने का मन करता है।
कभी तो सांसो की जगह उसको ही महसूस करते थे, अब फिर अपनी सांसे लेने का मन करता है।
कभी तो बिना देखे उसे दिन की शुरुआत नही होती थी, अब नज़र ना मिले उनसे ऐसी आरज़ू करने का मन करता है।
कभी तो सिर्फ लिखकर ही इश्क़ का इज़हार करते थे, अब उन सारे खातों को जल देने का मन करता है।
कभी तो व्हाट्सएप्प पर उसकी डी पी देखते देखते रेट गुज़ार देते थे, अब उसे ब्लॉक कर देने का मन करता है।
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