एक मुलाकात अमित दत्त के साथ

मंडी हाउस जाने का मेरा कारण तब और सार्थक हो जाता है जब ललित कला अकादमी में आयोजित किसी कला प्रदर्शनी को पास से निहारने का मौका मिल जाता है।
आजकी प्रदर्शनी जिसका शीर्षक था लकीरे और इसके कलाकार थे अमित दत्त जी। हर बार की तरह इस बार भी मै चित्रो का अवलोकन करते हुए आगे बढ़ रहा था तभी एक नई चीज़ ने मुझे आकर्षित किया और वो था उन चित्रो के साथ लगी छोटी छोटी चिटे जिसमे हिंदी में कुछ पंकितयां लिखी थी जो उस कलाकारी के साहित्यक रुप का बखान कर रही थी। उस वक्त वंहा पर कुछ सज्जन आपस में चर्चा भी कर रहे थे तभी मुझे आभास हुआकी उसमे एक शख़्श खुद कलाकार अमित दत्त जी हैं। उनसे बातचीत के दौरान मेने उनसे पूछा की क्या आप कलाकारी के साथ कुछ लिखते है भी ? उन्होंने जवाब दिया कि  लिखता हूँ और उन्हें चित्रो के साथ ही लगाता भी हूँ। चर्चा के दौरान उन्होंने अपने कुछ विचार साझा किये जिसमे वो कहते है की हमें कभी भी खूबसूरत कलाकारी करने की कोशिश नही करना चाहिये मसलन जो हमारे विचारो के रूप में दिल से निकल कर तस्वीर के रूप में उतर  आये वही सही मायनो में कलाकारी है। उन्होंने कहा कि एक बेहतर कलाकार वही है जो अपने अंदर  की वास्तविकता को बिना किसी भौतिक मकसद के परदे पर अंकित कर दे। अमित जी एक सरल विचारों के सुलझे हुए इंसान है जो अपने कार्य को लगन के साथ करते हैं।
अमित दत्त के साथ हुयी बातों ने मुझे अपने अंदर के सच को पहचानने में एक नई भूमिका अदा की है। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते मेरे अंदर भी तमाम विचार उभरते है लेकिन उसमे बहुत कम ही ज़बान से निकल कर बहार आ पते है
अमित दत्त जी के साथ ये मुलाकात अपने आप में अद्भुत है।  

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